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माननीय बृजेश पाठक जी कैबिनेट मंत्री उत्तर प्रदेश शासन जी के द्वारा त्रैमासिक ई-पत्रिका "उद्घोष" का विमोचन
माननीय मुख्यन्यायमूर्ति श्री गोविन्द माथुर जी के साथ संघ का प्रतिनिधिमंडल
महामहीम राज्यपाल श्री राम नाईक जी के साथ संघ का प्रतिनिधिमंडल

संघ के बारे में

संघ का संक्षिप्त इतिहास

दीवानी न्यायालय कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश का गठन सन् 1920 में हुआ था और सन् 1928 में संघ को मान्यता प्राप्त हुई थी। तदोपरान्त संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की सरकार ने 1929 में मान्यता प्रदान की थी। उस समय तक राजकीय सेवा एवं आचरण नियमावली ने लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता काल नही देखा था।

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संघ का उद्देश्य

1. न्यायिक कर्मचारीगण, वादकारियों एवं अधिवक्ता बंधुओं की समस्याओं का अध्ययन करना, यथोचित सुझाव देना एवं उनका निराकरण करवाने हेतु सार्थक प्रयास करना।
2. भारतीय न्यायपालिका की गरिमा और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिये सदैव तत्पर रहना।

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Blogs

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न्यायिक कर्मचारी के परिप्रेक्ष्य में
‘कर्मचारी एकता’ शब्द की समीक्षा

(भागवत शुक्ल)

‘कर्मचारी एकता’’ शब्द है जो सुनने में काफी अच्छा लगता है लेकिन दीवानी न्यायालय कर्मचारियों में यह शब्द कितना प्रभावी और सार्थक है इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है।

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अस्तित्व की तलाश में

(नरेन्द्र विक्रम सिंह)

अधीनस्थ न्यायपालिका के कर्मचारी आज तक न्यायपालिका में अपने अस्तित्व की तलाश की जद्दोजहद में है। हम कार्य करते है न्यायपालिका में समस्त न्यायिक कार्यों को हमारे ही हाथो से गुजरना है।

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हौसले बुलंद होंगे तो बुलंदी मिलती है

(अभिषेक सिंह)

दोस्तों हमें लगता है कि कोई आएगा और हमारी सारी समस्याओं का समाधान कर देगा यही विचार हम अपने कार्य क्षेत्र के विषय में भी सोचते हैं और चाहते हैं कि कोई आगे बढ़कर हमारी समस्याओं का समाधान करे।

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संगठन शक्ति है ‘‘संघे शक्ति कलयुगे’’

(सै0 मोहम्मद ताहा)

भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका जैसे महत्वपूर्ण स्तम्भ के नींव के पत्थर के रूप में हम सभी का योगदान आम जनता को सुलभ न्याय दिलवाने में कम नही है। अधीनस्थ न्यायालय कर्मचारियों के अथक प्रयास से देश

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शंखनाद

(अभिषेक श्रीवास्तव)

प्रत्यक्ष हो या न हो, हम न्याय व्यवस्था के संचालक हैं।
अधिवक्ता और अधिकारी के मध्य स्थित सहायक हैं।
जो गिन ना सके उन पन्नों के संरक्षक कार्यपालक हैं।

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(वर्तमान में निष्कपट मेहनती एवं मन और हृदय से सीधे साधे मजदूर/श्रमिक वर्ग की वर्तमान समाजिक परिस्थितियों एवं उसके अधिकारो तथा सम्मान का हनन के सम्बन्ध में एक मजदूर/श्रमिक की पीड़ा)

(विवेक कुमार)

हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै.....
पत्थर तो बहुत तोड़े हैं मैने पर कभी किसी पर फेंका नहीं, सड़के तो बहुत बनायी पर कभी...

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(कचहरी अर्थात् न्यायालय केवल एक भवन नहीं, बल्कि यह न्याय, अनुशासन, और प्रशासन का केंद्र होती है। इस संस्थान में कार्यरत कर्मचारी—चाहे वे लिपिक हों, पेशकार हों, रीडर हों या अन्य प्रशासनिक पदों पर—इन सभी की भूमिका अदृश्य होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। न्यायिक प्रक्रिया के सुचारु संचालन में इन कर्मचारियों का योगदान बुनियादी और अपरिहार्य है। कचहरी के कर्मचारियों का जीवन अनुशासन, दायित्व और कठिन परिश्रम का परिचायक होता है। वे प्रतिदिन न्यायाधीशों, वकीलों, पक्षकारों और आम जनता के बीच समन्वय का कार्य करते हैं। न्यायालयीन दस्तावेजों को समय पर तैयार करना, पेशियों का रजिस्ट्रेशन, आदेशों की टंकण, केस डायरी का संधारण और अन्य अदालती प्रक्रियाओं का लेखा-जोखा बनाए रखना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। यह कार्य अत्यंत जिम्मेदारी और सावधानी की मांग करता है, क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया में जरा-सी त्रुटि भी किसी निर्दोष को दोषी ठहरा सकती है या न्याय में देरी का कारण बन सकती है। कचहरी का वातावरण अक्सर दबावपूर्ण और औपचारिक होता है। अत्यधिक कार्यभार, समय की कमी, और जन अपेक्षाओं का दबाव इन कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है। इसके बावजूद वे पूरी निष्ठा से अपने कार्य में लगे रहते हैं। की पीड़ा)

(अजय कुमार यादव, वरिष्ठ सहायक, जनपद न्यायालय कासगंज)

छुट्टियों की सीमितता, स्थानांतरण की अनिश्चितता, और कभी-कभी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव जैसी चुनौतियों का भी उन्हें सामना करना पड़ता है। मै.....
कर्मचारी जीवन में सामाजिक सम्मान अपेक्षाकृत कम होता है, जबकि उनका कार्य समाज में न्याय और शांति की स्थापना का आधार बनता है। कई बार जनता उन्हें सिर्फ 'सरकारी बाबू' समझकर अनदेखा कर देती है, जबकि हकीकत यह है कि एक-एक वादी-प्रतिवादी की सुनवाई समय पर हो, इसके पीछे इन कर्मचारियों की अथक मेहनत छिपी होती है। संक्षेप में कहा जाए तो कचहरी के कर्मचारी न्याय व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। उनका जीवन भले ही आम नजरों से साधारण प्रतीत हो, परंतु उनके बिना न्याय की गाड़ी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती। समाज को चाहिए कि वह उनके कार्य और समर्पण को सम्मान दे और उनके कार्यस्थल की परिस्थितियों में सुधार हेतु नीतिगत प्रयास करे।...

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  अध्यक्षीय कार्यालय- जनपद न्यायालय, बदायूं
             महासचिव कार्यालय- जनपद न्यायालय, श्रावस्ती

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