(कचहरी अर्थात् न्यायालय केवल एक भवन नहीं, बल्कि यह न्याय, अनुशासन, और प्रशासन का केंद्र होती है। इस संस्थान में कार्यरत कर्मचारी—चाहे वे लिपिक हों, पेशकार हों, रीडर हों या अन्य प्रशासनिक पदों पर—इन सभी की भूमिका अदृश्य होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। न्यायिक प्रक्रिया के सुचारु संचालन में इन कर्मचारियों का योगदान बुनियादी और अपरिहार्य है। कचहरी के कर्मचारियों का जीवन अनुशासन, दायित्व और कठिन परिश्रम का परिचायक होता है। वे प्रतिदिन न्यायाधीशों, वकीलों, पक्षकारों और आम जनता के बीच समन्वय का कार्य करते हैं। न्यायालयीन दस्तावेजों को समय पर तैयार करना, पेशियों का रजिस्ट्रेशन, आदेशों की टंकण, केस डायरी का संधारण और अन्य अदालती प्रक्रियाओं का लेखा-जोखा बनाए रखना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। यह कार्य अत्यंत जिम्मेदारी और सावधानी की मांग करता है, क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया में जरा-सी त्रुटि भी किसी निर्दोष को दोषी ठहरा सकती है या न्याय में देरी का कारण बन सकती है। कचहरी का वातावरण अक्सर दबावपूर्ण और औपचारिक होता है। अत्यधिक कार्यभार, समय की कमी, और जन अपेक्षाओं का दबाव इन कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है। इसके बावजूद वे पूरी निष्ठा से अपने कार्य में लगे रहते हैं। की पीड़ा)
(अजय कुमार यादव, वरिष्ठ सहायक, जनपद न्यायालय कासगंज)
छुट्टियों की सीमितता, स्थानांतरण की अनिश्चितता, और कभी-कभी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव जैसी चुनौतियों का भी उन्हें सामना करना पड़ता है। मै.....
कर्मचारी जीवन में सामाजिक सम्मान अपेक्षाकृत कम होता है, जबकि उनका कार्य समाज में न्याय और शांति की स्थापना का आधार बनता है। कई बार जनता उन्हें सिर्फ 'सरकारी बाबू' समझकर अनदेखा कर देती है, जबकि हकीकत यह है कि एक-एक वादी-प्रतिवादी की सुनवाई समय पर हो, इसके पीछे इन कर्मचारियों की अथक मेहनत छिपी होती है। संक्षेप में कहा जाए तो कचहरी के कर्मचारी न्याय व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। उनका जीवन भले ही आम नजरों से साधारण प्रतीत हो, परंतु उनके बिना न्याय की गाड़ी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती। समाज को चाहिए कि वह उनके कार्य और समर्पण को सम्मान दे और उनके कार्यस्थल की परिस्थितियों में सुधार हेतु नीतिगत प्रयास करे।...
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